ठहराव!

आज मैं अपने समय के प्रसिद्ध हिन्दी कवि रहे स्वर्गीय शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी की एक कविता शेयर कर रहा हूँ| अनेक पुरस्कारों से अलंकृत सुमन जी की कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|

लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी की यह कविता –

तुम तो यहीं ठहर गये
ठहरे तो किले बान्धो
मीनारें गढ़ो
उतरो चढ़ो
उतरो चढ़ो
कल तक की दूसरों की
आज अपनी रक्षा करो,
मुझको तो चलना है
अन्धेरे में जलना है
समय के साथ-साथ ढलना है
इसलिये मैने कभी
बान्धे नहीं परकोटे
साधी नहीं सरहदें
औ’ गढ़ी नहीं मीनारें
जीवन भर मुक्त बहा सहा
हवा-आग-पानी सा
बचपन जवानी सा।

(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|

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