आज एक बार फिर से मैं अपने जमाने में काव्य मंचों पर हलचल मचाने वाले स्वर्गीय बलबीर सिंह रंग जी का एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ| रंग जी की कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय बलबीर सिंह रंग जी का यह गीत –

पूजा के गीत नहीं बदले,
वरदान बदलकर क्या होगा ?
तरकश में तीर न हों तीखे, संधान बदलकर
क्या होगा ?
समता के शांत तपोवन में
अधिकारों का कोलाहल क्यों ?
लड़ने के निर्णय ज्यों के त्यों, मैदान बदलकर
क्या होगा ?
मानवता के मठ में जाकर
जो पशुता की पूजा करते,
प्रभुता के भूखे भक्तों का ईमान बदलकर
क्या होगा ?
पथ की दुविधाओं से डरकर
जो सुविधाओं की ओर चले,
ऐसे पथभ्रष्ट पंथियों का अभियान बदलकर
क्या होगा ?
यदि फूलों में मधु-गंध न हो
काँटों का चुभना बंद न हो,
चिड़ियों की चहक स्वच्छंद न हो उद्यान बदलकर
क्या होगा ?
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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