आज एक फिर से मैं श्रेष्ठ गीतकार और देश में नवगीत आंदोलन के प्रमुख स्तंभ स्वर्गीय शंभुनाथ सिंह जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय शंभुनाथ सिंह जी का यह गीत –

विषम भूमि नीचे, निठुर व्योम ऊपर!
यहाँ राह अपनी बनाने चले हम,
यहाँ प्यास अपनी बुझाने चले हम,
जहाँ हाँथ और पाँव की ज़िन्दगी हो
नई एक दुनिया बसाने चले हम;
विषम भूमि को सम बनाना हमें है
निठुर व्योम को भी झुकाना हमें है;
न अपने लिये, विश्वभर के लिये ही
धरा व्योम को हम रखेंगे उलटकर!
विषम भूमि नीचे, निठुर व्योम ऊपर!
अगम सिंधु नीचे, प्रलय मेघ ऊपर!
लहर गिरि-शिखर सी उठी आ रही है,
हमें घेर झंझा चली आ रही है,
गरजकर, तड़पकर, बरसकर घटा भी
तरी को हमारे ड़रा जा रही है
नहीं हम ड़रेंगे, नहीं हम रुकेंगे,
न मानव कभी भी प्रलय से झुकेंगे
न लंगर गिरेगा, न नौका रुकेगी
रहे तो रहे सिन्धु बन आज अनुचर!
अगम सिंधु नीचे, प्रलय मेघ ऊपर!
कठिन पंथ नीचे, दुसह अग्नि ऊपर!
बना रक्त से कंटकों पर निशानी
रहे पंथ पर लिख चरण ये कहानी
,
बरसती चली जा रही व्योम ज्वाला
तपाते चले जा रहे हम जवानी;
नहीं पर मरेंगे, नहीं पर मिटेंगे
न जब तक यहाँ विश्व नूतन रचेंगे
यही भूख तन में, यही प्यास मन में
करें विश्व सुन्दर, बने विश्व सुन्दर!
कठिन पंथ नीचे, दुसह अग्नि ऊपर!
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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