खंडहर के प्रति!

आज एक बार फिर से प्रस्तुत कर रहा हूँ , छायावाद युग के एक प्रमुख स्तंभ स्वर्गीय सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की एक कविता, जिन्होंने हमें ‘राम की शक्ति पूजा’ जैसी कुछ अमर रचनाएं हमें दी हैं|  निराला जी की कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|

लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की यह रचना  

खंडहर! खड़े हो तुम आज भी?
अदभुत अज्ञात उस पुरातन के मलिन साज!
विस्मृति की नींद से जगाते हो क्यों हमें–
करुणाकर, करुणामय गीत सदा गाते हुए?

पवन-संचरण के साथ ही
परिमल-पराग-सम अतीत की विभूति-रज-
आशीर्वाद पुरुष-पुरातन का
भेजते सब देशों में;
क्या है उद्देश तव?
बन्धन-विहीन भव!
ढीले करते हो भव-बन्धन नर-नारियों के?
अथवा,
हो मलते कलेजा पड़े, जरा-जीर्ण,
निर्निमेष नयनों से
बाट जोहते हो तुम मृत्यु की
अपनी संतानों से बूँद भर पानी को तरसते हुए?

किम्बा, हे यशोराशि!
कहते हो आँसू बहाते हुए–
“आर्त भारत! जनक हूँ मैं
जैमिनि-पतंजलि-व्यास ऋषियों का;
मेरी ही गोद पर शैशव-विनोद कर
तेरा है बढ़ाया मान
राम-कॄष्ण-भीमार्जुन-भीष्म-नरदेवों ने।
तुमने मुख फेर लिया,
सुख की तृष्णा से अपनाया है गरल,
हो बसे नव छाया में,
नव स्वप्न ले जगे,
भूले वे मुक्त प्राण, साम-गान, सुधा-पान।”
बरसो आसीस, हे पुरुष-पुराण,
तव चरणों में प्रणाम है।

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार|                                         

                            ********  

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