लीजिए आज एक बार फिर से प्रस्तुत है हिन्दी के एक श्रेष्ठ व्यंग्यकार और कुशल मंच संचालक श्री अशोक चक्रधर जी की एक कविता| कविता काफी पुरानी है और इसमें अशोक जी ने अपने प्रिय पात्र ‘बौड़म जी’ के माध्यम से स्वतंत्रता के बाद के पाँच दशकों के बारे में कहा है| चक्रधर जी की बहुत सी रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है श्री अशोक चक्रधर जी की यह कविता –

बौड़म जी स्पीच दे रहे थे मोहल्ले में,
लोग सुन ही नहीं पा रहे थे हो-हल्ले में।
सुनिए सुनिए ध्यान दीजिए,
अपने कान मुझे दान दीजिए।
चलिए तालियां बजाइए,
बजाइए, बजाइए
समारोह को सजाइए !
नहीं बजा रहे कोई बात नहीं,
जो कुछ है वो अकस्मात नहीं।
सब कुछ समझ में आता है,
फिर बौड़म आपको जो बताता है
उस पर ग़ौर फरमाइए फिलहाल-
हमारी आज़ादी को पचास साल
यानि पांच दशक बीते हैं श्रीमान !
उन पांच दशकों की हैं
पांच सीढ़ियां, पांच सोपान।
इस दौरान
हम समय के साथ-साथ आगे बढ़े हैं,
अब देखना ये है कि
हम इन पांच सीढ़ियों पर
उतरे हैं या चढ़े हैं।
पहला दशक, पहली सीढ़ी-सदाचरण
यानि काम सच्चा करने की इच्छा,
दूसरा दशक, दूसरी सीढ़ी-आचरण
यानि उसके लिए प्रयास अच्छा।
तीसरा दशक, तीसरी सीढ़ी-चरण
यानि थोड़ी गति, थोड़ा चरण छूना,
चौथा दशक, चौथी सीढ़ी-रण
यानि आपस की लड़ाई
और जनता को चूना।
पांचवां दशक, पांचवीं सीढ़ी बची-न !
यानि कुछ नहीं
यानि शून्य, यानि ज़ीरो,
लेकिन हम फिर भी हीरो।
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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