अपनी गंध नहीं बेचूंगा!

आज मैं प्रसिद्ध हिन्दी कवि और राजनेता, स्वर्गीय बालकवि बैरागी जी की एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ| बैरागी जी की कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|

लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय बालकवि बैरागी जी की यह कविता  

चाहे सभी सुमन बिक जाएं
चाहे ये उपवन बिक जाएं
चाहे सौ फागुन बिक जाएं
पर मैं गंध नहीं बेचूंगा- अपनी गंध नहीं बेचूंगा

जिस डाली ने गोद खिलाया जिस कोंपल ने दी अरुणाई
लक्षमन जैसी चौकी देकर जिन कांटों ने जान बचाई
इनको पहिला हक आता है चाहे मुझको नोचें तोडें
चाहे जिस मालिन से मेरी पांखुरियों के रिश्ते जोडें

ओ मुझ पर मंडरानेवालों
मेरा मोल लगानेवालों
जो मेरा संस्कार बन गई वो सौगंध नहीं बेचूंगा
अपनी गंध नहीं बेचूंगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएं।

मौसम से क्या लेना मुझको ये तो आएगा-जाएगा
दाता होगा तो दे देगा खाता होगा तो खाएगा
कोमल भंवरों के सुर सरगम पतझारों का रोना-धोना
मुझ पर क्या अंतर लाएगा पिचकारी का जादू-टोना
ओ नीलम लगानेवालों
पल-पल दाम बढानेवालों
मैंने जो कर लिया स्वयं से वो अनुबंध नहीं बेचूंगा
अपनी गंध नहीं बेचूंगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएं।

मुझको मेरा अंत पता है पंखुरी-पंखुरी झर जाऊंगा
लेकिन पहिले पवन-परी संग एक-एक के घर जाऊंगा
भूल-चूक की माफी लेगी सबसे मेरी गंध कुमारी
उस दिन ये मंडी समझेगी किसको कहते हैं खुद्दारी
बिकने से बेहतर मर जाऊं अपनी माटी में झर जाऊं
मन ने तन पर लगा दिया जो वो प्रतिबंध नहीं बेचूंगा
अपनी गंध नहीं बेचूंगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएं।

मुझसे ज्यादा अहं भरी है ये मेरी सौरभ अलबेली
नहीं छूटती इस पगली से नीलगगन की खुली हवेली
सूरज जिसका सर सहलाए उसके सर को नीचा कर दूं?
ओ प्रबंध के विक्रेताओं
महाकाव्य के ओ क्रेताओं
ये व्यापार तुम्हीं को शुभ हो मुक्तक छंद नहीं बेचूंगा
अपनी गंध नहीं बेचूंगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएं।

(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार|                                         

                            ********  

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