आज मैं अपने समय में मंचों पर अपनी अलग ही अलग छाप बनाने वाले, स्वर्गीय मुकुट बिहारी सरोज जी की एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ| सरोज जी की काव्य प्रस्तुति की अपनी ही अलग शैली थी, उनकी कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय स्वर्गीय मुकुट बिहारी सरोज जी की यह कविता –

रात भर पानी बरसता और सारे दिन अंगारे ।
अब तुम्ही बोलो कि कोई ज़िंदगी कैसे गुज़ारे ?
बेवज़ह सब लोग भागे जा रहे हैं,
देखने में ख़ूब आगे जा रहे हैं,
किन्तु मैले हैं बहुत अंतःकरण से,
मूलतः बदले हुए हैं आचरण से,
रह गए हैं बात वाले लोग थोड़े,
और अब तूफ़ान का मुँह कौन मोडे,
नाव डाँवाडोल है ऐसी कि कोई क्या उबारे,
जब डुबाने पर तुले ही हो किनारे पर किनारे ।
है अनादर की अवस्था में पसीना
इसलिए गड़ता नहीं कोई नगीना,
साँस का आवागमन बदला हुआ है,
एक क्यारी क्या चमन बदला हुआ है
नागरिकता दी नहीं जाती सृजन को,
अश्रु मिलते है तृषा के आचमन को,
एक उत्तर के लिए हल हो रहे हैं ढेर सारे ।
और जिनके पास हल है बंद हैं उनके किवारे ।
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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