प्रसिद्ध हिन्दी व्यंग्यकार स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ त्यागी जी की एक कविता आज प्रस्तुत कर रहा हूँ| एक कुशल व्यंग्यकार होने के अलावा त्यागी जी ने काफी अच्छी कविताएं भी लिखी हैं, उनकी कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ त्यागी जी की यह कविता –

बातों का खो गया सारा अर्थ
शेष रह गई मात्र उसकी आवाज़
आज का दिन नाव-सा चला गया
न कोई मांझी, न कोई पाल
शब्दों के केंचुल ने ढक दिया मेरा प्रश्न,
और तुम्हारा उत्तर-
तुम्हारे ही साथ सीढ़ियों से उतर गया;
कविता में कौन पकड़ पाया सत्य,
कवि स्वयं अपनी व्याख्या
तुम कुछ भी कर लो मगर
किसी का हृदय कभी नहीं छीना जा सकता,
जीवन का युद्ध रहा सदा दुखान्त
इसमें कभी कोई नहीं जीता,
न युद्ध न प्रेम
किसी का कोई अर्थ कहीं नहीं होता…
मेरा न कोई वर्तमान, नकोई भविष्य
फिर भी जरूरी है स्वप्नों का गीत
मत छीनों मुझसे
मेरा कलपता अतीत
बातों की फुलझड़ियों से जला लें साँझ,
द्वार पर भीड़ जुड़ी
मैं ठहरा जाने वाला अतिथि,
मैं रहा एक ऎसा अभिनेता
जिसे रंगमंच से निकलना नहीं आता,
निकल भी जाता तो बोलता क्या-
नाटककार ने कहीं नहीं लिखा…
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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