आज मैं राष्ट्रप्रेम की कविताएं लिखने वाले प्राचीन कवि पद्म भूषण स्वर्गीय बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ जी की एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ| उनकी कुछ कविताएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है पद्म भूषण स्वर्गीय बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ जी की यह कविता –

ओ असिधारा-पथ के गामी!
विकट सुभट तुम, अथक पथिक तुम कंटक-कीर्णित मग-अनुगामी
ओ असिधारा-पथ के गामी!
तुम विकराल मृत्यु आसन के साधक, तुम नवजीवन-दानी
तुम विप्लव के परम प्रवर्तक, चरम शांति के निष्ठुर स्वामी!
ओ असिधारा-पथ के गामी!
शत-शत शताब्दियों के पातक पुंज हो रहे पानी-पानी,
अंजलि भर-भर जीवन शोणित देने वाले ओ निष्कामी!
तुम असिधारा-पथ के गामी!
हे प्रचंड उद्दंड, अखंड महाव्रत के पालक विज्ञानी,
तड़प उठा है सब जग ज़रा ठहर जाओ, हे मौन अनामी!
तुम असिधारा-पथ के गामी!
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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