उषस् (तीन)!

आज मैं भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध कवि स्वर्गीय नरेश मेहता जी की एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ| सुबह के सुंदर चित्र चित्र प्रस्तुत करते हुए उन्होंने एक ही शीर्षक से कुछ कविताएं लिखी थीं, उनमें से एक आज प्रस्तुत है| उनकी कुछ कविताएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|

लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय नरेश मेहता जी की यह कविता  

थके गगन में उषा-गान !!

तम की अँधियारी अलकों में
कुंकम की पतली-सी रेख
दिवस-देवता का लहरों के
सिंहासन पर हो अभिषेक
सब दिशि के तोरण-बन्दनवारों पर किरणों की मुसकान !!

प्राची के दिकपाल इन्द्र ने
छिटका सोने का आलोक
विहगों के शिशु-गन्धर्वों के
कण्ठों में फूटे मधु-श्लोक
वसुधा करने लगी मन्त्र से वासन्ती रथ का आह्वान !!

नालपत्र-सी ग्रीवा वाले
हंस-मिथुन के मीठे बोल
सप्तसिन्धु के घिरें मेघ-से
करें उर्वरा दें रस घोल
उतरे कंचन-सी बाली में बरस पड़ें मोती के धान !!

तिमिर-दैत्य के नील-दुर्ग पर
फहराया तुमने केतन
परिपन्थी पर हमें विजय दो
स्वस्थ बने मानव-जीवन
इन्द्र हमारे रक्षक होंगे खेतों-खेतों औ’ खलिहान !!

सुख-यश, श्री बरसाती आओ
व्योमकन्यके ! सरल, नवल
अरुण-अश्व ले जाएँ तुम्हें
उस सोमदेन के राजमहल
नयन रागमय, अधर गीतमय बनें सोम का कर फिर पान !!

(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार|                                         

                            ********  

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