फेसबुक पर एक वीडिओ देखा जिसमें एक युवक को कई लोग मिलकर लाठियों से पीट रहे हैं और तमाशबीनों की भारी भीड़ चारों तरफ खड़ी इस दृश्य को देख रही है। बड़ा ही हृदय विदारक दृश्य था, ऐसा लगता ही नहीं था कि उस युवक को पीटने वाले इंसान थे, और चारों तरफ से घेरकर तमाशा देखने वाली तमाशबीनों की भीड़ उसे क्या कहा जाए, वे भी या तो अन्याय कर रहे लोगों की तरह हत्यारे थे, या हिजड़े थे।
अब इस घटना पर लोगों का तब्सिरा देख लेते हैं। एक सज्जन ने इस वीडिओ को शेयर करते हुए बताया कि यह मध्य प्रदेश में सिंगरौली जिले की घटना है और इसके लिए प्रदेश की बीजेपी सरकार जिम्मेदार है। एक और सज्जन ने इसे बिहार की घटना बताया और इस संबंध में अखबार की कटिंग भी साथ में लगाई है। इसी वीडिओ पर एक सज्जन ने टिप्पणी की है कि यह बंगाल की घटना है और आरएसएस के कार्यकर्ता इस घटना को अंजाम दे रहे हैं।
कुल मिलाकर बात ये है कि केवल राहुल गांधी जैसे असफल नेता ही मौतों पर सियासत नहीं करते, लाशों पर रोटियां नहीं सेकते, छुटपुट कार्यकर्ता किस्म के लोग भी इस तरह के घृणित कारनामों को अपना इच्छित राजनैतिक रंग देने में संकोच नहीं करते।
हत्या और लूटपाट जैसे हिंसक कार्य दुनिया के हर कोने में होते हैं, अमरीका और आस्ट्रेलिया आदि में भी ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, लेकिन ऐसा शायद भारत में ही होता है कि कुछ गुंडे एक निहत्थे नवयुवक को बेरहमी से पीटते-पीटते मार डालें और चारों तरह खड़ी कायरों की भीड़ इस घटना को चुपचाप देखती रहे, और यह भी कि बाद में लोग इस घटना को अपना पसंदीदा राजनैतिक रंग चढ़ाकर प्रस्तुत करें।
शायद भारत में बाकी दुनिया से ज्यादा, इस बात पर लोग विश्वास करते हैं कि कोई सुपरमैन, कोई अवतार आएगा और जो कुछ भी गलत है, उसको सुधार देगा। वैसे तो बाकी दुनिया भी स्पाइडरमैन आदि की कहानियां देखती है, भारत में शायद लोग यही मानकर बैठे रहते हैं कि ऐसे हालात को सुधारना सुपरमैन का ही काम है, भले ही वो पर्दे के अमिताभ बच्चन या अजय देवगन के रूप में हो या प्रभु आ जाएं अवतार लेकर, हम लोग कुछ नहीं करेंगे और जनता से ज्यादा पुलिस का इसमें विश्वास है कि कार्रवाई करना उसका नहीं सुपरमैन का ही काम है।
मैं ऐसा मानता हूँ कि इस प्रकार की कोई घटना यदि कोई होती है तो उसे संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के फेसबुक पृष्ठ, ट्विटर हैंडल पर डालकर, या किसी भी तरह से उनके संज्ञान में लाया जाना चाहिए, और उनको यह मालूम हो कि जनता इस बात को जान गई है, इसका विवरण प्रमुख पत्रकारों के पृष्ठ पर भी डाला जा सकता है, जिससे उस पर आवश्यक कार्रवाई हो। अगर राजनैतिक रोटियां सेकना ही उद्देश्य हो, तब बात अलग है। न्यायपालिका पर भी इस बात का दबाव डाला जाना चाहिए कि ऐसे मामलों में कठोर दंड दिया जाए और समय पर दिया जाए। अभी तो ऐसा लगता है कि न्यायपालिका पर अपराधियों की अधिक आस्था है, साधारण नागरिकों के मुकाबले।
नमस्कार।
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