आज की बात शुरू करते समय मुझे चुनाव के समय का एक प्रसंग याद आ रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी जी के विरुद्ध डॉ. कर्ण सिंह चुनाव लड़ रहे थे। दोनों श्रेष्ठ नेता हैं और एक दूसरे का आदर भी करते हैं। एक चुनावी सभा में डॉ. कर्ण सिंह ने कहा कि वाजपेयी जी इस राजनीति के चक्कर में क्यों पड़े हैं, वे मेरे महल में रहें और वहाँ रहकर कविताएं लिखें। इस पर वाजपेयी ने चुनावी जवाब देते हुए कहा था कि अच्छी कविता महलों में रहकर नहीं लिखी जाती, वह तो कुटिया में लिखी जाती है।
असल में जो प्रसंग मुझे याद आ रहा है, बहुत से पुराने प्रसंग ऐसे होते हैं कि उनकी सत्यता प्रमाणित करना तो संभव नहीं होता लेकिन उनसे प्रेरणा अवश्य ली जा सकती है।
कहा जाता है कि एक गरीब ब्राह्मण तुलसीदास जी के पास आया, वैसे यह भी अजीब बात है कि गरीब और ब्राह्मण, एक-दूसरे के पर्याय जैसे बन गए हैं। चलिए मैं इस तरह कहूंगा कि एक गरीब व्यक्ति तुलसीदास जी के पास आया। उसकी बेटी की शादी होनी थी और उसको इस विवाह के आयोजन के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता थी। उसने तुलसीदास जी से इस संबंध में प्रार्थना की। अब तुलसीदास जी तो खुद धन-संपत्ति से बहुत दूर थे, वे क्या सहायता करते! लेकिन उनके समकालीन और अच्छे मित्र रहीम जी (अब्दुर्रहीम खानखाना) महाराज अकबर के दरबार में थे, उनके नवरत्नों में शामिल थे। वे उस व्यक्ति की सहायता कर सकते थे।
तुलसीदास जी ने उस व्यक्ति को एक कागज़ पर एक पंक्ति लिखकर दी और कहा कि यह लेकर आप रहीम जी के पास चले जाओ, वे आपकी सहयता करेंगे। उस कागज़ पर तुलसीदास जी ने लिखा था- ‘सुरतिय, नरतिय, नागतिय- सबके मन अस होय’, जिसका आशय है कि चाहे देवताओं की पत्नियां हों, चाहे महिलाएं हों या नागवंश में भी, नागिन हों- उन सभी को धन-संपत्ति, जेवर, मणि आदि अच्छे लगते हैं, उनकी आवश्यकता होती है।
वह व्यक्ति उस पर्ची को लेकर रहीम जी के पास गया, वे आशय समझ गए और उन्होंने उस व्यक्ति की भरपूर सहायता की, फिर उन्होंने उस व्यक्ति से कहा कि यह पर्ची वापस तुलसीदास जी को दे देना। उन्होंने उस पर्ची पर एक और पंक्ति लिख दी थी और अब दोनों पंक्तियां मिलकर इस प्रकार हो गई थीं-
सुरतिय, नरतिय, नागतिय- सबके मन अस होय
गोद लिए हुलसी फिरै, तुलसी सो सुत होय
यहाँ रहीम जी ने तुलसीदास जी से कहा कि आपने सही नहीं कहा, धन-संपत्ति महिलाओं को प्रिय हो सकती हैं, लेकिन सबसे बड़ी सौभाग्यशाली तो वह मां है, जिसका तुलसीदास जैसा बेटा हो।
अभी जबकि दशहरा बीता है और दीवाली आने वाली है, मन हुआ कि रामकथा के अमर गायक, तुलसीदास जी से जुड़ा यह प्रसंग साझा करूं।
नमस्कार।
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BACHPAN ME YE SUB HINDI KE CLASS ME GYAN MIL JATA THA , AAPKA BEHOOT BEHOOT DHANYAVAD
You are welcome Nitin Ji.
सर जी प्रणाम बहुत अच्छी जानकारी मिली धन्यवाद
धन्यवाद शर्मा जी|
Very nice
Thanks ji.