एक बार और दिल की बात कर लेते हैं, ऐसे ही कुछ बातें और आ रही हैं दिमाग में, आप इसे दिल पर मत लेना।
कितनी तरह के दिल लिए घूमते हैं दुनिया में लोग, एक गीत में किसी ने बताया था- ‘कोई सोने के दिल वाला, कोई चांदी के दिल वाला, शीशे का है मतवाले तेरा दिल’।
वैसे हमारा दिल, हमें चैन से रखने के लिए क्या कुछ कोशिशें नहीं करता-
दिल ढूंढता है, फिर वही फुर्सत के रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जाना किए हुए!
जिगर मुरादाबादी साहब का शेर है-
आदमी, आदमी से मिलता है,
दिल मगर कम किसी से मिलता है।
एक शेर बशीर बद्र साहब का याद आ रहा है-
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा कोई जाएगा,
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो।
एक और शेर किसी का याद आ रहा है-
एक इश्क़ का गम आफत, और उस पे ये दिल आफत,
या गम न दिया होता, या दिल न दिया होता।
एक शेर फैज़ अहमद फैज़ साहब का है-
कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी,
सुनते थे वो आएंगे, सुनते थे सहर होगी।
और बहादुर शाह ज़फर साहब का ये शेर तो बहुत प्रसिद्ध है-
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें,
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में।
और अब दाग देहलवी साहब का एक शेर याद कर लेते हैं, क्योंकि वैसे तो यह अनंत कथा है-
तुम्हारा दिल, मेरे दिल के बराबर हो नहीं सकता,
वो शीशा हो नहीं सकता, ये पत्थर हो नहीं सकता।
चलिए अब एक फिल्मी गीत का मुखड़ा और जोड़ देते हैं-
दिल लगाकर हम ये समझे, ज़िंदगी क्या चीज है,
इश्क़ कहते हैं किसे और आशिक़ी क्या चीज है।
ये विषय ऐसा ही कि जब बंद करने की सोचते हैं, तभी कुछ और याद आ जाता है। फिल्मी गीतों के दो मुखड़े और याद आ रहे हैं, उसके बाद बंद कर दूंगा, सच्ची!
ये दिल न होता बेचारा, कदम न होते आवारा
जो खूबसूरत कोई अपना हमसफर होता।
और दूसरा-
चल मेरे दिल, लहराके चल, मौसम भी है, वादा भी है,
उसकी गली का फासला, थोड़ा भी है, ज्यादा भी है,
चल मेरे दिल।
अब चलते रहिए।
नमस्कार।
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nice post sir
Thanks.
my pleasure sir