कुछ दिन से अपनी पुरानी कुछ कविताएं शेयर कर रहा हूँ, ऐसी कविताएं जिन्हें पहले कहीं सुनाया, दिखाया या छपवाया नहीं। ये स्टॉक अभी खत्म नहीं हुआ, आगे भी जारी रहेगा, लेकिन इस बीच ये नया साल भी तो आ गया न!
तो आज साबिर दत्त जी की ये रचना, जिसे जगजीत सिंह जी ने गाया है, इसको शेयर करते हुए सभी को नए साल की शुभकामनाएं देता हूँ। आशा है कि इसमें जो बातें व्यंग्य के लहज़े में कही गई हैं, वे मेरे देश और दुनिया में, वास्तविक रूप में घटित होंगी-
इक बिरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है।
ज़ुल्म की रात बहुत जल्द टलेगी अब तो
आग चूल्हों में हर इक रोज़ जलेगी अब तो,
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर एक शख़्स यहाँ सोएगा,
आँधी नफ़रत की चलेगी न कहीं अब के बरस
प्यार की फ़स्ल उगाएगी ज़मीं अब के बरस
है यक़ीं अब न कोई शोर-शराबा होगा
ज़ुल्म होगा न कहीं ख़ून-ख़राबा होगा
ओस और धूप के सदमे न सहेगा कोई
अब मेरे देश में बेघर न रहेगा कोई
नए वादों का जो डाला है वो जाल अच्छा है
रहनुमाओं ने कहा है कि ये साल अच्छा है
दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है!
पुनः आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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3 replies on “132. मुबारक़ हो नया साल!”
Apko bhi
Happy New year
Happy New Year to you too.