चलिए अब फिर से, जो काम बीच में छोड़ दिया था अपनी अधबुनी, अधखुली कवित्ताओं को शेयर करने का, वो काम फिर से शुरू करता हूँ। आज की कविता गीत के रूप में है-
गीतों में कहनी थीं, तुमसे कुछ बातें
आओ कुछ समय यहीं साथ-साथ काटें।
अपनी तुतली ज़ुबान गीतमयी
मुद्दत से बंद चल रही,
करवट लेते विचार हर पल लेकिन,
वाणी खामोश ही रही।
आंदोलित करें आज, भीतर की हलचल को,
चुन लें अभिव्यक्ति के, फूल और कांटे।
आओ कुछ समय यहीं साथ-साथ काटें।।
जीवन सागर से, याचक बने समेटें
गीतों की शंख-सीपियां,
दूर करें मिलकर, तट को गंदा करतीं,
उथली, निर्मम कुरीतियां।
जन-गण के सपनों पर
अपनी टांगें पसार,
सोते संप्रभुओं की नींद कुछ उचाटें।
(श्रीकृष्ण शर्मा)
नमस्कार।
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बहुत खुब
धन्यवाद शिखा जी।
Ashay sampoorna aur atyant pravahi vichar! Bahot khub.
(Sorry I dont have Devanagri script key pad)
प्रशंसा एवं प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार। इससे मुझे आगे लिखने की प्रेरणा मिलती है।
अतिसुन्दर हृदयस्पर्शी मार्मिक पंक्तियाँ
धन्यवाद पुष्पेंद्र जी।