एक गीत और आज शेयर कर रहा हूँ, यह मां शारदे से प्रार्थना के रूप में है। ये गीत उन दिनों लिखे गए थे जब मैं दिल्ली छोड़ चुका था, दिल्ली में मेरे पास गोष्ठियों आदि में नई रचनाएं सुनने और शेयर करने की सुविधा उपलब्ध थी, जबकि बाद में जहाँ था, वहाँ ऐसी कविताएं शेयर करने का माहौल नहीं था। वहाँ तो हल्का-फुल्का पढ़कर ताली पिटवाई जा सकती थी।
फिर ये कविताएं लिखकर रखी गईं तो बस रखी ही गईं। आज लंबे समय के बाद लगा कि यह माध्यम मिला है तो इनको झाड़- पोंछकर लोगों के सामने रख दूं।
शारदे मां शारदे,
अभिव्यक्ति का उपहार दे।
बालक तेरा निरीह, भटके वन-वन,
कर दे इस निर्जन को नंदन कानन,
सुधियों के छंद सभी
मां मुझे उधार दे।
जितना भी अहंकार आज तक संजोया था,
मौन हुई वाणी सब, पत्तों सा झर गया,
जिसने तेरे पुनीत चरणों का ध्यान कर
किंचित भी लिखा, सभी ओर नाम कर गया।
अपने इस पुत्र को, हे वीणापाणि मां,
प्यार दे, दुलार दे।।
गीतों में रच सकूं, अनूठा संसार,
कर सकूं तेरे बच्चों को सच्चा प्यार,
मुझको वह शक्ति दे, अनूठी रचना करूं,
सिरजन की प्यास
मेरे मन में उतार दे।।
मेरी पहचान हो, सच्चे वाणी पुत्र सी,
एक यही कामना मेरी पूरी कर दे।
मुद्दत से झोली, खाली मेरी चल रही,
अपने आशीषों से मां, इसको भर दे।
मन निर्मल-शांत हो, वाणी गूंजे निर्भय,
मन में अनुराग और स्वर में झंकार दे।
शारदे मां शारदे,
अभिव्यक्ति का उपहार दे।
(श्रीकृष्ण शर्मा)
नमस्कार।
================
2 replies on “136. सिरजन की प्यास मेरे मन में उतार दे!”
Nice lines sir
Thanks a lot.