आज का गीत छोटा सा है। जैसा है आपके सामने प्रस्तुत है-
मौन यूं कवि मत रहो,
अब गीत उगने दो।
अनुभव की दुनिया के
अनगिनत पड़ाव,
आसपास से गुज़र गए,
झोली में भरे कभी
पर फिर अनजाने में,
सभी पत्र-पुष्प झर गए,
करके निर्बंध, पिपासे मानव-मन को-
अनुभव-संवेदन दाना चुगने दो।
खुद से खुद की बातें
करने से क्या होगा,
सबसे, सबकी ही
संवेदना कहो,
अपने ही तंतुजाल में
उलझे रहकर तुम,
दुनिया का नया
तंत्रजाल मत सहो,
आगे बढ़कर सारे
भटके कोलाहल में,
मंजिल के लिए
लालसा जगने दो।
मौन यूं कवि मत रहो,
अब गीत उगने दो।
(श्रीकृष्ण शर्मा)
नमस्कार।
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Bahut bariya sir 🙂
Dhanyavaad dear.
Acha hein Sharma ji
Thanks Anamika Ji.