आज मुकेश जी का गाया एक बहुत प्यारा गीत याद आ रहा है। यह गीत लिखा है- जावेद अनवर जी और असद भोपाली जी ने, संगीतकार हैं- उषा खन्ना जी और गायक हैं मेरे प्रिय मुकेश जी।
ऐसे गीत कुछ मौकों पर बहुत सहारा देते हैं, कुछ अंदर की भाप निकालने के लिए, जब लगता कि जिस दीवार या स्तंभ को हम अपना बहुत बड़ा सहारा मान रहे थे, वो तो रेत का टीला मात्र था। गीत हर मूड के लिखे गए हैं और सभी का अपना महत्व है। आज प्रस्तुत है यह गीत-
नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहीं,
अब ये शीशा किसी तस्वीर के क़ाबिल ही नहीं,
मैं कहाँ जाऊं कि मेरी कोई मंज़िल ही नहीं।
फेर ली मुझसे नज़र अपनों ने बेगानों ने,
मेरा घर लूट लिया घर के ही मेहमानों ने,
जो मुझे प्यार करे ऐसा कोई दिल ही नहीं।
दिल बहल जाए, खयालात का रुख मोड़ सकूं,
मैं जहाँ बैठ के हर अहद-ए-वफा तोड़ सकूं,
मेरी तक़दीर में ऐसी कोई महफिल ही नहीं।
दो जहाँ शौक में हैं, आज फिज़ा भी चुप है,
किस से फरियाद करूं अब तो ख़ुदा भी चुप है,
ये वो अफसाना है जो सुनने के क़ाबिल ही नहीं।
नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहीं।
आज के लिए इतना ही, नमस्कार।
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