पुराने ब्लॉग्स तो फिर से पढ़ते ही रहेंगे, आज किशोर दा को उनके एक गीत के बहाने याद कर लेते हैं। किशोर कुमार जी शायद भारतीय फिल्म संगीत में सबसे लोकप्रिय पुरूष गायक रहे हैं। एक समय ऐसा भी आया कि जब किशोर कुमार जी की बढ़ती डिमांड के कारण, सुरों के बादशाह माने जाने वाले रफी साहब को काम मिलना बंद हो गया था।
किशोर कुमार जी की आवाज़ में एक अलग तरह की मस्ती थी, खनक थी और उन्होंने अपनी पहचान ज्यादातर मस्ती भरे गीतों से बनाई- मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू, चूड़ी नहीं मेरा दिल है, ओ मनचली कहाँ चली, और सुरों के साथ अनूठे खेल से भरे गीत, जैसे –एक चतुर नार करके सिंगार। हालांकि उन्होंने कुछ गीत ऐसे भी गाए- ‘कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा, मेरे महबूब क़यामत होगी, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, आदि।
आज किशोर दा का जो गीत याद आ रहा है, वो अपने आप में अलग तरह का है, गीत के लेखक हैं गुलज़ार जी, संगीत- हेमंत कुमार जी का है, और यह गीत फिल्म- दो दूनी चार के लिए रिकॉर्ड किया गया था। लीजिए प्रस्तुत है ये अनूठा गीत, जिसमें गुलज़ार जी के लेखन, हेमंत दा के संगीत और किशोर कुमार जी के गायन की जादूगरी शामिल हैं –
हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम
हम अनजान परदेसियों का सलाम
हवाओं पे लिख दो …
शाख पर जब, धूप आई, हाथ छूने के लिये
छाँव छम से, नीचे कूदी, हँस के बोली आइये
ये भोले से चेहरे हैं मासूम नाम
हवाओं पे लिख दो …
चुलबुला ये, पानी अपनी, राह बहना भूलकर
लेते लेते, आइना चमका रहा है फूल पर
यहाँ सुबह से खेला करती है शाम
हवाओं पे लिख दो …
2 replies on “156. यहाँ सुबह से खेला करती है शाम!”
Nice post
Thanks dear