आज स्व. रमेश रंजक जी का एक नवगीत शेयर करने का मन हो रहा है, रंजक जी नवगीत आंदोलन के एक महत्वपूर्ण रचनाकार थे। जो रचना शेयर कर रहा हूँ, इसी शीर्षक से उनका एक प्रारंभिक संकलन भी प्रकाशित हुआ था। इस गीत में उन्होंने आशावाद और जुझारूपन की भावनाओं को अभिव्यक्त किया है।
प्रस्तुत है यह नवगीत-
टूट जायेंगे
हरापन नहीं टूटेगा।
कुछ गए दिन
शोर को कमज़ोर करने में
कुछ बिताए
चाँदनी को भोर करने में
रोशनी पुरज़ोर करने में
चाट जाये धूल की दीमक भले ही तन
मगर हरापन नहीं टूटेगा।
लिख रही हैं वे शिकन
जो भाल के भीतर पड़ी हैं
वेदनाएँ जो हमारे
वक्ष के ऊपर गढ़ी हैं
बन्धु! जब-तक
दर्द का यह स्रोत-सावन नहीं टूटेगा।
हरापन नहीं टूटेगा।।
नमस्कार।
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Nice post
Thanks dear