
बहुत अच्छा लगने वाला लेकिन काफी कठिन सवाल है! क्या है जो आपको बहुत अच्छा लगता है। ऐसा मुझसे सामान्यतः पूछा जाए, तो शायद मैं दो-तीन चीजें गिनाकर रुक जाऊंगा। लेकिन ऐसी 30 चीजें! बहुत मुश्किल है उस आंकड़े तक पहुंचना जी। चलिए आपके साथ मिलकर वहाँ तक पहुंचने की कोशिश करते हैं।
कुछ बातें तो मैं समझता हूँ कि ऐसी हैं जो सभी को अच्छी लगती हैं। जैसे प्यार, आदर, प्रशंसा- ये तीनों तो सभी को अच्छे लगते हैं, भले ही बहुत छोटा बच्चा हो अथवा बुज़ुर्ग हो। कोई इस पर विचार नहीं करेगा कि वह वास्तव में इन तीनों को पाने का अधिकारी है या नहीं। हाँ ये तीनों पदार्थ नहीं हैं और इनका संबंध किसी ‘सेंस’ (ज्ञानेंद्रिय) से नहीं है, हाँ इनकी अभिव्यक्ति बोलकर, हाथ मिलाकर, चूमकर अथवा चरण छूकर, अनेक प्रकार से होती है, उसमें हमारी ‘सेंस’ उपयोग में आती हैं।
अब जैसे ज़ुबान से हम मीठा अथवा कड़वा बोलते हैं, और कानों से सुनकर उन मीठी अथवा कड़ुवी बातों को ग्रहण करते हैं और अंततः उसका प्रभाव हमारे दिल पर पड़ता है और अंततः स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है। उसी प्रकार अपनी जीभ के वशीभूत होकर, स्वाद के लिए हम बहुत से व्यंजन मजे लेकर खाते हैं, और ऐसा हो सकता है बल्कि अक्सर होता है कि जो पदार्थ खाने में हमारी जिव्हा को ज्यादा आनंद देता है वह हमारे पेट, हमारे पाचन-तंत्र के लिए जटिल साबित हो जाता है!
हाँ एक मामले में मुझे इस प्रश्न का उत्तर देने में आसानी लग रही है। जी हाँ अगर 30 व्यंजनों का, पकवानों का, मिठाइयों का ही नाम बताना हो तो ये काम तो बड़े आराम से किया जा सकता है। अब ये समझ लीजिए कि ऊपर तीन- प्यार, आदर और प्रशंसा हो गए और दो मीठा और कड़ुवा बोलना, सुनना! ये तो पांच हो गए।
हाँ मीठा या कडुवा खाना नहीं गिनते, इसको पदार्थों के नाम से ही जानेंगे। हाँ तो 25 और बताने हैं ना जी! वैसे ज्ञानेंद्रिय तो सभी अब तक ही शामिल हो गई हैं ना! बाकी तो आप कहें तो बड़े आराम से व्यंजनों का ही नाम ले लेते हैं। अब गिनती नहीं करूंगा जी, लेकिन मुझे विश्वास है कि पदार्थों के नाम तो इतने हो ही जाएंगे!
इस मामले में शुरुआत करूंगा अपनी सर्वाधिक प्रिय डिश से! जी हाँ अगर रसोई में मान लीजिए आटा ही भूना जा रहा है तो उसकी महक के कारण ही मैं पूछ लेता हूँ कि ‘हलुवा बन रहा है क्या?’ अब हलुवा सूजी का भी हो सकता है, आटे का भी! मुझे आलू उबालकर उनका हलुआ बनाना- खाना भी बहुत अच्छा लगता है। इसमें बेसन का हलुआ भी मिला लें तो चार प्रकार के हलुए ही हो जाएंगे। कुल मिलाकर मिठाइयों से भी मेरी सूची पूरी हो सकती है!
मिठाइयों की जितनी सूची मुझे अचानक ही याद आती है, उसमें जलेबी, रसमलाई, चमचम, गुलाब जामुन, रबड़ी-फालूदा, दो और हलुए याद आ गए जी- गाजर का हलुआ और मूंग दाल का हलुआ! वैसे बर्फी, कलाकंद और मैसूर पाग भी अपनी अलग पहचान रखते हैं। रक्षा बंधन और सावन के मौसम की एक विशेष मिठाई है- घेवर! त्यौहारों के मौके पर घर में गुजिया बनाई जाती है, उसका भी अपना महत्व है।
वैसे आप जानते ही होंगे कि जब घर में मीठी स्वादिष्ट खीर बनती है, किशमिश-बादाम डालकर तब उसका आनंद अलग ही होता है।
अब सोचता हूँ कि मिठाइयों से ही सूची को पूरा करने की ज़िद क्यों की जाए! कुछ फलों को भी शामिल कर लेते हैं ना जी!
मुझे आम बहुत अच्छे लगते हैं, कहते हैं सीता-माता के दहेज में देने के लिए इनको विकसित किया गया था! आम में ही इतने प्रकार और इतने स्वाद शामिल हैं कि मिठास के विभिन्न स्वरूप देखने को मिल जाते हैं। केला, संतरा, सेब, मुसम्बी भी मुझे बहुत आनंद देते हैं और जामुन भी, जब उनको नमक मिलाकर किसी लोटे आदि में घोट लिया जाए।
कुछ और पदार्थ, जो ड्राई फ्रूट की श्रेणी में भी आ जाते हैं, जैसे खजूर, जो सूखकर छुआरा बन जाता है, मुझे इसके दोनो स्वरूप पसंद हैं। बाकी बादाम, किशमिश, अखरोट, अंजीर आदि-आदि कितने नाम गिनाएं।
कुल मिलाकर वे चीजें बहुत अच्छा तात्कालिक प्रभाव छोड़ती हैं, जो हमारी जिव्हा को खुश करके पेट में जाती हैं, भले ही कभी-कभी वे पेट को कष्ट भी दे देती हैं।
वैसे मैंने यह अत्याचार कर दिया कि किसी नमकीन डिश का नाम नहीं लिया, तो लीजिए पूरी श्रद्धा के साथ समोसा और कचौरी का नाम ले देता हूँ, इसके अलावा बहुत प्रकार की चाट भी होती हैं। और जी ‘पान लबों की शान’, उसको भी नहीं भूल सकते जी!
बहुत सारी चॉइस मेरे पास नहीं हैं, क्योंकि मांसाहार मैं करता नहीं और शराब की तारीफ तो अच्छी नहीं है ना जी, और सिगरेट की भी तो!
लेकिन हूज़ूर असली आनंद तो इसमें है कि आप मेरा ब्लॉग पढ़कर, मेरी रचना को पढ़कर अथवा सुनकर मेरी प्रशंसा करें।किसी भी कारण से मेरा ही क्यों, किसी का भी आदर करें, सम्मान करें।
लेकिन ज्यादा लंबा खींचने पर लोग नाराज भी हो सकते हैं और कुछ न कहें तो बीच में ही पढ़ना छोड़ सकते हैं, इसलिए मुझे अभी-अभी सद्बुद्धि आ गई है और मैं अपना आलेख यहीं समाप्त करता हूँ।
नमस्कार।
नमस्कार।