भोपाल पहले अनेक बार गया हूँ, तालाबों के लिए मशहूर इस पहाड़ी इलाके में बसे नगर से लंबे समय से नाता रहा है, परंतु पहले जब गया, तब मैं ब्लॉग नहीं लिखता था। इस बार जब सबसे पहले भ्रमण के बारे में सोचा तो सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ई.पू. में जिन स्तूपों का निर्माण प्रारंभ किया गया था, भगवान बुद्ध के संदेशों का प्रसार करने के लिए, उन सांची स्तूपों को देखने की योजना बनाई ।
जैसा कि सभी जानते हैं, मौर्य वंश के महान शासक- अशोक ने लगभग पूरे भारत पर राज्य किया, अनेक युद्ध जीते और अंत में उन्हें लगा कि युद्ध का, दूसरे शासकों पर आक्रमण करके अपने राज्य का विस्तार करते जाने का रास्ता गलत है, उन्होंने भगवान बुद्ध के उपदेशों को न केवल अपनाया अपितु दूर-दूर तक इन संदेशों का प्रसार भी किया।
सम्राट अशोक ने अपने दूत भेजकर जहाँ विदेशों में भी इन उपदेशों का प्रसार किया, वहीं भारत में भी अनेक स्थानों पर भगवान बुद्ध के संदेशों वाले शिलालेख लिखवाए, वहीं कुछ ऐसे तीर्थ स्थान विकसित किए जहाँ आकर लोग भगवान बुद्ध के जीवन और संदेशों के बारे में जान सकते हैं।
सम्राट अशोक द्वारा विकसित किए गए इस प्रकार के अनेक स्थानों में ही शामिल हैं सांची के ये स्तूप, जो भोपाल से लगभग 46 कि.मी. उत्तर-पूर्व में स्थित हैं और विदिशा यहाँ से 10 कि.मी. दूर हैं।
अत्यंत आकर्षक ढंग से तैयार किए गए इन स्तूपों में भगवान बुद्ध के संदेशों और जीवन से संबंधित झांकियों को बड़े सुंदर तरीके से उकेरा गया है। तीसरी शताब्दी ई.पू. में इनका निर्माण प्रारंभ किया गया और बाद में लंबे समय तक इनमें कभी कुछ जोड़ने और कभी कुछ तोड़ने की गतिविधियां चलती रहीं, क्योंकि इसमें हिंदू धर्म और बोद्ध धर्म के अनुयायियों और प्रचारकों का अंतर संघर्ष भी शामिल था।
सांची के ये बौद्ध स्तूप विश्व-धरोहरों में शामिल किए गए हैं और इनको एक बार अवश्य देखना चाहिए। दुनिया भर से सैलानी और श्रद्धालु यहाँ आते हैं। यहाँ दो विशाल स्तूप, इनके चारों तरफ बने विशाल द्वार, जिन पर भगवान बुद्ध के जीवन के अनेक प्रसंग दर्शाए गए हैं, मोनास्ट्री आदि अनेक देखने योग्य निर्माण शामिल हैं।
जहाँ हम अनेक आधुनिक स्थानों का भ्रमण करते हैं, उनके बीच ही इस धार्मिक और ऐतिहासिक स्थान पर जाकर अच्छा लगा, जिसे विश्व धरोहरों में शामिल किया गया है।
आज के लिए इतना ही। कल किसी और स्थान की बात करेंगे।
नमस्कार।
4 replies on “बुद्धम शरणम गच्छामी- सांची के स्तूप!”
me too have written on same- https://littlethingssnehal.blogspot.com/2018/10/sanchi-stupa-witness-glorious-history.html
Nice.
Nice write up !!
We also went there last year in December.
One can feel the energy there. There is this feel good factor.
Thanks for the comments.