कल शुरू किया था एक यात्रा विवरण, आज उसको निपटा लेता हूँ। जहाँ गया था ‘बारामती’, वहाँ तक का तो बस रास्ता ही तय किया, कुछ मंदिर हैं वहाँ पर, उनको भी नहीं देख पाया, शाम होते-होते सोचा कि अब वापसी यात्रा पर चलते हैं। यह फैसला किया था कि वापसी में कोल्हापुर घूमते हुए आऊंगा। कोल्हापुर को लेकर एक ही चीज याद थी- कोल्हापुरी चप्पल!
तो बारामती से कोल्हापुर जाने की जुगाड़ देखने लगा। सीधी बस पकड़कर, सतारा होते हुए जाने का विकल्प था, लेकिन ऐसी कोई बस रात में उपलब्ध नहीं थी और आते समय जिस तरह भटका था, वैसा भटकने की अभी हिम्मत नहीं थी। एक ही स्थान है- पुणे, जहाँ के लिए वहाँ से लगातार बसें मिलती रहती हैं, लगभग ढाई घंटे का सफर! पुणे होकर कोल्हापुर जाना, रास्ते को लंबा करना था, लेकिन रात में वहाँ रुकना नहीं होगा, और लगातार यात्रा करके सुबह तक- कोल्हापुर पहुंच जाएंगे। इसके लिए यही है कि-‘तुझको चलना होगा’!, हाँ तो चल रहे हैं ना!
रात में लगभग 10 बजे पुणे पहुंचे और वहाँ से दूसरी बस पकड़कर सुबह कोल्हापुर पहुंचकर फिर वही, दिन के समय 4-5 घंटे सोना। पिछली ब्लॉग-पोस्ट में जो चित्र डाला था, वह कोल्हापुर के उस होटल के प्रवेश-द्वार का चित्र था, जिसमें मैं रुका था।
हाँ तो सुबह के लगभग 5 बजे मैं कोल्हापुर पहुंचा था, 4-5 घंटे सोने के बाद, लगभग 11 बजे, एक ऑटो करके कुछ प्रमुख स्थल वहाँ के, देखने का मन बनाया।
ऑटो वाले साथी पहले मुझे ‘न्यू पैलेस’ ले गए, जहाँ पर राजा के महल को श्री छत्रपति शाहू संग्रहालय बना दिया गया है। ऐसे महलों में कुछ वस्तुएं तो ऐसी होती हैं, जो सभी महलों में होती हैं, लेकिन कुछ ऐसी अवश्य होती हैं जिनके चित्र लेने का मन होता है और विशेष रूप से ब्लॉग में उनको शामिल करने का लालच भी, लेकिन मोबाइल स्विच-ऑफ करने की शर्त, और ऐसे में छिपकर फोटो खींचना भी तो अच्छा नहीं लगता। निश्चित रूप से कोल्हापुर जाएं तो यह संग्रहालय भी देखना चाहिए।
वैसे कोल्हापुर के टाउन हॉल में भी एक बड़ा संग्रहालय है, लेकिन जब वहाँ भी मोबाइल बंद करने की शर्त देखी तो मैं अंदर ही नहीं गया, हाँ बगल में बने गणपति मंदिर के दर्शन किए और पार्क में घूम लिया।
हिंदुओं के लिए, कोल्हापुर का सबसे प्रमुख स्थान निश्चित रूप से श्री महालक्ष्मी मंदिर है। इस मंदिर को पुराणों में वर्णित शक्तिपीठों में शामिल किया गया है। इस प्रमुख मंदिर के पास ही भवानी मंडप है, जो 200 वर्ष पूर्व निर्मित किया गया था और शाही निवास था। यह नागरिकों और भक्तजनों, दोनो के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। कोल्हापुर का शिवाजी महाराज से गहरा नाता रहा है। यहाँ छोटा सा भवानी मंदिर भी है और वहाँ यह भी दर्शाया गया है कि किस प्रकार शिवाजी महाराज फलों के टोकरों में छिपकर गए थे।
रंकाला झील भी कोल्हापुर का एक प्रमुख आकर्षण है। इसके अलावा पन्हला फोर्ट, कोल्हापुर से लगभग 22 कि.मी. दूर, कोल्हापुर-रत्नागिरी मार्ग पर स्थित है। गगनगिरी महाराज मठ, ज्योतिबा मंदिर, कन्हेरी मठ, रौतवाडी झरना आदि अनेक दर्शनीय स्थान यहाँ पर हैं, यदि आप 2-3 दिन का समय लेकर वहाँ घूमने वहाँ जाएं। मैंने तो 3-4 घंटे ही वहाँ बिताए, इसलिए नगर से बाहर के स्थान- किला, मठ आदि मैं नहीं देख पाया।
यह यात्रा विवरण मैं यहीं समाप्त करता हूँ।
नमस्कार।
**********