आज फिर से मुझे अपने प्रिय गायक मुकेश जी का गाया एक गीत याद आ रहा है। जनकवि शैलेंद्र जी का लिखा यह गीत, 1962 में बनी फिल्म- आशिक़ के लिए मुकेश जी ने शंकर जयकिशन जी के संगीत निर्देशन में गाया था।
इस फिल्म में राजकपूर एक सड़क छाप नायक बने हैं, जो संभ्रांत किस्म की नायिका के एकतरफा प्रेम में यह गीत गाते हैं और उस पर ही यह इल्ज़ाम लगाते हैं कि वह जबर्दस्ती उनके दिल में प्रवेश कर रही हैं। अब जबर्दस्ती तो गलत ही होती है न!
बहुत ही खूबसूरत गीत है, आइए आज इस गीत को याद कर लेते हैं-
ये तो कहो कौन हो तुम, कौन हो तुम
मुझसे पूछे बिना दिल में आने लगे
मीठी नज़रों से बिजली गिराने लगे
ये तो कहो कौन हो तुम, कौन हो तुम।
रात भी निराली, ये रुत भी निराली
रंग बरसाए उमंग मतवाली,
प्यार भरी आँखों ने जाल हैं बिछाए
कैसे कोई दिल की करेगा रखवाली,
ये तो कहो कौन हो तुम, कौन हो तुम।
मस्तियों के मेले ये खोई-खोई रातें
आँख करे आँखों से रस भरी बातें
भोले-भाले हैं वो मगर देखने में
मुझसे क्या छुपेंगी ये लूटने की घातें
ये तो कहो कौन हो तुम, कौन हो तुम।
तुम्हीं तो नहीं हो, जो सपनों में आ के
छुप गए अपनी झलक दिखला के
तुम्हीं तो नहीं हो, मैं ढूँढा किया जिनको
फिर भी तुम न आए, मैं थक गया बुला के
ये तो कहो कौन हो तुम, कौन हो तुम।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।
Beautiful song. I could almost listen to Mukesh ji singing.
Thanks Sir.