आज ‘रजनीगंधा’ फिल्म के संदर्भ के साथ, मुकेश जी का गाया एक बहुत प्यारा सा गीत याद आ रहा है। यह श्री अमोल पालेकर जी की शुरू कि फिल्मों में से एक थी, जिससे उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। फिल्म की नायिका थीं विद्या सिन्हा जी और अगर मुझे सही याद है तो इसमें श्री दिनेश ठाकुर भी सहनायक थे, जिनमें काफी संभावनाएं नज़र आती थीं, परंतु वे अधिक फिल्मों में आए नहीं।
यह फिल्म, मन्नू भंडारी जी की कहानी- ‘यही सच है’ पर आधारित। इसमें दर्शाया गया है कि कोई व्यक्ति, विशेष रूप से महिला कभी एक परिवेश में होती है और ऐसा मानती है कि यही उसका अपना परिवेश है, लेकिन फिर जब वह बदलकर एक नए परिवेश में आती है, उसे एक नया साथी मिलता है, तब वह धीरे-धीरे यह स्वीकार कर लेती है कि ये ही वास्तव में उसकी मंज़िल है।
यह फिल्म बहुत सुंदर तरीके से बनाई गई थी, बहुत सारी बातें इस फिल्म के बारे में याद आ रही हैं, लेकिन मैं वे सब नहीं करूंगा, एक ही डॉयलाग अमोल जी का, जो एक सामान्य बाबू का रोल इसमें बखूबी निभाते हैं, वह अपने फिल्मी पटकथा के किसी सहकर्मी का दक्षिण भारतीय सहकर्मी की बात बार-बार करते हैं, जो लगातार तरक्की करता जाता है और ये कहते जाते हैं-‘ वो साला रंगानाथन’।
कुल मिलाकर इस फिल्म में मन के सीमाएं लांघने वाले स्वभाव को दर्शाने वाले स्वभाव को दर्शाने वाले इस गीत को ही मैं यहाँ शेयर करना चाहूंगा, जिसे – योगेश जी ने लिखा है और सलिल चौधरी जी के संगीत निर्देशन में मेरे प्रिय गायक- मुकेश जी ने बहुत खूबसूरत ढंग से गाया है। प्रस्तुत हैं इस गीत के बोल-
कई बार यूं ही देखा है
ये जो मन की सीमारेखा है
मन तोड़ने लगता है।
अन्जानी प्यास के पीछे,
अन्जानी आस के पीछे,
मन दौड़ने लगता है।
राहों में, राहों में, जीवन की राहों में,
जो खिले हैं फूल-फूल मुस्कुराते,
कौन सा फूल चुराके, मैं रख लूं मन में सजाके
कई बार यूं ही देखा है।
जानूँ न, जानूँ न, उलझन ये जानूँ न,
सुलझाऊं कैसे कुछ समझ न पाऊँ,
किसको मीत बनाऊँ, मैं किसकी प्रीत भुलाऊँ
कई बार यूं ही देखा है।
आज के लिए इतना ही।
नमस्कार।
Beautiful song. I also saw the film Rajanigandha. Nice film.
Thanks Sir.