ज़िंदगी हमें तेरा ऐतबार न रहा!

सदाबहार गायक मुकेश जी के गाये गीतों के क्रम में आज प्रस्तुत कर रहा हूँ, 1964 में रिलीज़ हुई राज कपूर जी की ब्लॉक बस्टर फिल्म- संगम का एक गीत। इस फिल्म में महान निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और शो-मैन राज कपूर जी ने ऐसे लापरवाह किस्म के नायक की भूमिका निभाई है जो किसी बात को सीरियसली नहीं लेता। प्रेम-त्रिकोण पर बनी इस फिल्म में, उनका मित्र, जिसकी भूमिका राजेंद्र कुमार जी ने निभाई है, वह उनके लिए अपने प्रेम की कुर्बानी देता है। लेकिन फिर कहानी में ऐसा घुमाव आता है कि उनके मरने की खबर आती है और उनके मित्र- राजेंद्र कुमार और नायिका- वैजयंती माला फिर से नज़दीक आने लगते हैं, और लौटकर आया यह हंसोड़ नायक बहुत सीरियस हो जात है।

इस परिस्थिति को अभिव्यक्त करने वाला गीत भी एक अमर गीत है जिसे लिखा है शैलेंद्र जी ने, संगीत है- शंकर-जयकिशन की सदाबहार जोड़ी का, और यह गीत है मुकेश जी कि अमर आवाज में! गीतों के फिल्मांकन में तो राज साहब का कोई जवाब है ही नहीं, प्रस्तुत है यह अमर गीत-

दोस्त, दोस्त ना रहा, प्यार, प्यार ना रहा,
ज़िंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा।

अमानतें मैं प्यार की, गया था जिसको सौंपकर
वो मेरे दोस्त तुम ही थे, तुम्हीं तो थे
जो ज़िंदगी की राह में, बने थे मेरे हमसफ़र
वो मेरे दोस्त तुम ही थे, तुम्हीं तो थे
सारे भेद खुल गए, राज़दार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा…

गले लगीं सहम सहम, भरे गले से बोलतीं
वो तुम ना थीं तो कौन था, तुम्हीं तो थीं
सफ़र के वक्त में पलक पे मोतियों को तौलती
वो तुम ना थीं तो कौन था, तुम्हीं तो थीं
नशे की रात ढल गयी, अब खुमार ना रहा
ज़िन्दगी हमें तेरा…

वफ़ा का ले के नाम जो, धड़क रहे थे हर घड़ी
वो मेरे नेक नेक दिल, तुम्हीं तो हो
जो मुस्कुराते रह गए, जहर की जब सुई गड़ी
वो मेरे नेक नेक दिल, तुम्हीं तो हो
अब किसी का मेरे दिल, इंतज़ार ना रहा
ज़िन्दगी हमें तेरा…

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।


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