आज फिर से एक पुरानी ब्लॉग पोस्ट शेयर कर रहा हूँ-
जीवन के जो अनुभव सिद्ध सिद्धांत हैं, वही अक्सर कविता अथवा शायरी में भी आते हैं, लेकिन ऐसा भी होता है कि कवि-शायर अक्सर खुश-फहमी में, बेखुदी में भी रहते हैं और शायद यही कारण है कि दिल टूटने का ज़िक्र शायरी में आता है या यह कहा जाता है-
मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिए, मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो!
अब हर समय व्यावहारिक बना रहे तो कवि-शायर क्या हुआ, सामान्य जीवन में, सभी लोग वैसे भी कहीं न कहीं धोखा खाते ही हैं और कुछ लोग जो ज्यादा भरोसा करने वाले होते हैं, वो खाते ही रहते हैं।
इसीलिए शायद कविवर रवींद्र नाथ ठाकुर ने लिखा था-
जदि तोर डाक सुनि केऊ ना आशे, तबे एकला चलो रे!
इसी बात को एक हिंदी फिल्मी गीत में बड़ी खूबसूरती से दोहराया गया है-
चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला
तेरा मेला पीछे छूटा राही, चल अकेला।
हजारों मील लंबे रास्ते तुझको बुलाते,
यहाँ दुखड़े सहने के वास्ते तुझको बुलाते,
यहाँ पूरा खेल अभी जीवन का, तूने कहाँ है खेला।
जगजीत सिंह जी की गाई एक गज़ल है, शायर शायद बहुत मशहूर नहीं हैं- अमजद इस्लाम ‘अमजद’, इस गज़ल में कुछ बहुत अच्छे शेर हैं जिनको जगजीत जी ने बड़े खूबसूरत अंदाज़ में प्रस्तुत किया है-
चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले।
फस्ल-ए-गुल आई है फिर आज असीराने वफा
अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले।
दिल ने इक ईंट से तामीर किया ताजमहल
तूने इक बात कही, लाख फसाने निकले।
दश्त-ए-तन्हाई-ए-हिजरा में खड़ा सोचता हूँ
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले।
आज यही भाव मन पर अचानक छा गया, बड़ा सुंदर कहा गया है इस गज़ल में, खास तौर पर आखिरी शेर में- अकेलेपन के जंगल में खड़ा हुआ मैं सोचता हूँ कि कैसे लोग थे जो मेरा साथ निभाने चले थे!
जीवन में जो बहुत से रंग-बिरंगे भावानुभव होते हैं, उनमें से यह भी एक है और यह काफी बार सामने आने वाला भाव है। और यह ऐसा भाव है जिसे मीना कुमारी जैसी महान कलाकार को भी भरपूर झेलना पड़ा है। उनके ही शब्दों मे आइए पढ़ते हैं-
चांद तन्हा है आस्मां, तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा।
बुझ गई आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुआं तन्हा।
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं,
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा।
हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे कहाँ तन्हा।
जलती-बुझती सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा सा एक मकां तन्हा।
राह देखा करेगा सदियों तक,
छोड़ जाएंगे ये जहाँ तन्हा।
तन्हाई, अकेलापन, बेरुखी- ये तो सबको झेलने पड़ते हैं, लेकिन मीना कुमारी जी जैसा कोई महान कलाकार ही यह दावा कर सकता है कि ‘छोड़ जाएंगे ये जहाँ तन्हा’ ।
नमस्कार।
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Well penned
Thanks.
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