पिछली बार मैंने स्व. रमेश रंजक जी का एक प्रेम गीत, शेयर किया था, आज उनका एक गीत जो जुझारूपन का, आम आदमी की बेचारगी का, बड़ी सरल भाषा में सजीव चित्रण करता है, कैसे एक आम इंसान के दिन और महीने बीतते हैं, उसका वर्णन इस गीत में है, लीजिए प्रस्तुत है ये गीत-
दोपहर में हड्डियों को शाम याद आए,
और डूबे दिन हज़ारों काम याद आए।
काम भी ऐसे कि जिनकी आँख में पानी,
और जिनके बीच मछली-सी परेशानी,
क्या बताएँ किस तरह से ’राम’ याद आए।
घुल गई जाने कहाँ से ख़ून में स्याही,
कर्ज़ पर चढ़ती गई मायूस कोताही,
तीस दिन में एक मुट्ठी दाम याद आए।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।
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Wah! Superb!