हिन्दी के चर्चित नवगीतकार स्वर्गीय रमेश रंजक जी का एक गीत आज शेयर कर रहा हूँ, इस गीत में रंजक जी ने कितनी खूबसूरती से यह अभिव्यक्त किया है कि दुख घर से जाने का नाम ही नहीं ले रहे हैं|

लीजिए प्रस्तुत है यह गीत-
जिस दिन से आए
उस दिन से
घर में यहीं पड़े हैं,
दुख कितने लंगड़े हैं ?
पैसे,
ऐसे अलमारी से,
फूल चुरा ले जायें बच्चे
जैसे फुलवारी से|
दंड नहीं दे पाता
यद्यपि-
रँगे हाथ पकड़े हैं ।
नाम नहीं लेते जाने का,
घर की लिपी-पुती बैठक से
काम ले रहे तहख़ाने का,
धक्के मार निकालूँ कैसे ?
ये मुझसे तगड़े हैं ।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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Bahut hi khubsurat rachna hai
Thanks a lot ji.
Indeed beautifully expressed
Thanks a lot.
dukh soch hai evam dimag ghar 🙂
Ji Sahi kaha aapne. Dhanyavad.