
हिन्दी काव्य मंचों के प्रमुख एवं लोकप्रिय कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत करने के क्रम में आज मैं श्री बालकवि बैरागी जी की एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ| बैरागी जी स्वाभिमान से भरी, एवं ओजपूर्ण कविताएं लिखने के लिए विख्यात हैं|
बैरागी जी मध्यप्रदेश के अति सामान्य समुदाय से उभरकर आए हैं और अपनी कविताओं की लोकप्रियता के बल पर वे सांसद के पद तक पहुंचे| उनका फिल्म के लिए लिखा एक गीत भी याद आता है-‘तू चंदा मैं चाँदनी, तू तरुवर मैं शाख रे’, कवि सम्मेलनों में जब बैरागी जी कविता पाठ करते हैं तब वे दिव्य वातावरण तैयार करते हैं| मुझे आज भी लाल किले के कवि सम्मेलनों में उनका कविता पाठ याद आता है| ऐसे कवि सम्मेलन जो कई बार दिन निकलने तक भी चलते थे|
आज की इस कविता में भी उन्होंने, प्रतीक रूप में सूर्य के अहंकार के सामने, दीप के समर्पण को महत्व दिया है, जो घर के दीवट में रात भर जलता है| लीजिए प्रस्तुत है श्री बालकवि वैरागी जी की यह कविता –
हैं करोडों सूर्य लेकिन सूर्य हैं बस नाम के,
जो न दें हमको उजाला, वे भला किस काम के?
जो रात भर जलता रहे उस दीप को दीजै दुआ,
सूर्य से वह श्रेष्ठ है, क्षुद्र है तो क्या हुआ!
वक्त आने पर मिला लें हाथ जो अँधियार से,
संबंध कुछ उनका नहीं है, सूर्य के परिवार से!
देखता हूँ दीप को और खुद में झाँकता हूँ मैं,
फूट पड़ता है पसीना और बेहद काँपता हूँ मैं|
एक तो जलते रहो और फिर अविचल रहो,
क्या विकट संग्राम है,युद्धरत प्रतिपल रहो|
हाय! मैं भी दीप होता, जूझता अँधियार से,
धन्य कर देता धरा को ज्योति के उपहार से!!
यह घडी बिल्कुल नहीं है शांति और संतोष की,
सूर्यनिष्ठा संपदा होगी गगन के कोष की|
यह धरा का मामला है, घोर काली रात है,
कौन जिम्मेवार है यह सभी को ज्ञात है|
रोशनी की खोज में किस सूर्य के घर जाओगे,
दीपनिष्ठा को जगाओ, अन्यथा मर जाओगे!!
आप मुझको स्नेह देकर चैन से सो जाइए,
स्वप्न के संसार में आराम से खो जाइए|
रात भर लड़ता रहूंगा मैं घने अँधियार से,
रंच भर विचलित न हूंगा मौसमों की मार से|
मैं जानता हूं तुम सवेरे मांग उषा की भरोगे,
जान मेरी जायेगी पर ऋण अदा उसका करोगे!!
आज मैंने सूर्य से बस जरा-सा यों कहा-
आपके साम्राज्य में इतना अँधेरा क्यों रहा?
तमतमाकर वह दहाड़ा–मैं अकेला क्या करूँ?
तुम निकम्मों के लिये मैं ही भला कब तक मरूँ?
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो,
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लड़ूँ, कुछ तुम लड़ो !!
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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9 replies on “संबंध कुछ उनका नहीं है, सूर्य के परिवार से!”
Ate uttam
Thanks ji.
Your Welcome Sir
बहुत ख़ूब
Thanks a lot ji.
Thanks to you for bringing such gems of hindi poetry to us.
Thanks a lot ji.
What a beautiful poetry! Thanks for sharing.
Thanks and welcome ji.