हिन्दी काव्य मंचों के प्रमुख एवं लोकप्रिय कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत करने के क्रम में आज मैं स्वर्गीय शिशुपाल सिंह जी ‘निर्धन’ की एक रचना शेयर कर रहा हूँ|

एक संकल्प इस कविता में है कि आज हमारे जीवन में कितना ही अंधकार क्यों न हो, हम अपने लक्ष्य अवश्य प्राप्त करेंगे| बड़ा ही ओजपूर्ण संकल्प इस कविता में व्यक्त किया गया है –
रात-रात भर जब आशा का दीप मचलता है,
तम से क्या घबराना सूरज रोज़ निकलता है ।
कोई बादल कब तक
रवि-रथ को भरमाएगा?
ज्योति-कलश तो निश्चित ही
आँगन में आएगा।
द्वार बंद मत करो भोर रसवंती आएगी,
कभी न सतवंती किरणों का चलन बदलता है ।
भले हमें सम्मानजनक
संबोधन नहीं मिले,
हम ऐसे हैं सुमन
कहीं गमलों में नहीं खिले।
अपनी वाणी है उद्बोधन गीतों का उद्गम,
एक गीत से पीड़ाओं का पर्वत गलता है ।
ठीक नहीं है यहाँ
वेदना को देना वाणी,
किसी अधर पर नहीं-
कामना, कोई कल्याणी ।
चढ़ता है पूजा का जल भी ऐसे चरणों पर
जो तुलसी बनकर अपने आँगन में पलता है ।
मत दो तुम आवाज़
भीड़ के कान नहीं होते,
क्योंकि भीड़ में-
सबके सब इंसान नहीं होते ।
मोती पाने के लालच में नीचे मत उतरो,
प्रणपालक तृण तूफ़ानों के सर पर चलता है ।
रात कटेगी कहो कहानी
राजा-रानी की,
करो न चिन्ता
जीवन-पथ में, गहरे पानी की।
हँसकर तपते रहो छाँव का अर्थ समझने को,
अश्रु बहाने से न कभी पाषाण पिघलता है ।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
*********
You are coming out with really beautiful and meaningful posts. Feels so good.
Thanks a lot Yagnesh ji.
My pleasure.
Beautiful post ❤️
Thanks a lot ji.