एक बार फिर से मैं, हिन्दी काव्य मंचों और फिल्मी दुनिया, दोनों क्षेत्रों में अपनी रचनाधर्मिता की अमिट छाप छोड़ने वाले स्वर्गीय गोपाल दास ‘नीरज’ जी की एक हिन्दी गजल, जिसे वे ‘गीतिका’ कहते थे प्रस्तुत कर रहा हूँ| नीरज जी जहां कवि सम्मेलनों में बहुत लोकप्रिय थे, वहीं उन्होंने हमारी फिल्मों में भी अनेक साहित्यिक गरिमा से युक्त गीत लिखे|

आज की यह गजल भी उनकी एक अलग पहचान प्रस्तुत करती है –
तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा ।
सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा ।
वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में,
हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा ।
तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में,
वो श्याम तो किसी मीरा की चश्म-ए-तर में रहा ।
वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की,
मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा ।
हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में,
उसे न कुछ भी मिला, जो अगर-मगर में रहा ।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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2 replies on “मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा !”
Very relevant lines, thanks for sharing.
Thanks a lot ji.