आज मैं एक बार फिर से अपने प्रिय शायरों में से एक रहे, स्वर्गीय निदा फाज़ली साहब की एक गज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ| निदा साहब अपनी काव्य शैली के अनूठेपन के लिए विख्यात थे, उसके अनेक शेर बरबस होठों पर आ जाते हैं, जैसे – ‘दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है’ अथवा ‘घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए’ और ‘मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार, दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी, बिन तार’ आदि-आदि|

आज की यह गज़ल भी उनकी काव्य शैली की अलग पहचान प्रस्तुत करती है –
उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा,
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा |
इतना सच बोल कि होंठों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा|
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली,
जिसको पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा|
मेरे बारे में कोई राय तो होगी उसकी,
उसने मुझको भी कभी तोड़ के देखा होगा|
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक,
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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5 replies on “जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा!”
Lovely.
Thanks a lot ji.
Welcome, Sir.
खूबसूरत कविता! मैंने पहले भी कई बार आपके पोस्ट पर कॉमेंट्स लिखने की असफल कोशिश की. आज ख़ुशक़िस्मती से कॉमेंट्स करने में सफल हुई.
You are most welcome Rekha ji, thanks a lot for that.