श्री बुद्धिनाथ मिश्र जी एक सुरीले और सृजनशील गीतकार हैं| संयोग से वे भी किसी समय उसी संस्थान के कोलकता स्थित निगमीय कार्यालय में कार्यरत रहे, जिसकी एक परियोजना में मैं कार्यरत था|
श्री बुद्धिनाथ जी का एक गीत बहुत प्रसिद्ध है- ‘एक बार और जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो’| आशावाद के इस गीत में कुछ बहुत जानदार अभिव्यक्तियाँ हैं|

आज मैं उनका जो गीत शेयर कर रहा हूँ, वह पत्रकारिता के छिछोरे चरित्र को उजागर करता है| लीजिए प्रस्तुत है यह प्रभावी गीत-
अपराधों के ज़िला बुलेटिन
हुए सभी अख़बार,
सत्यकथाएँ पढ़ते-सुनते
देश हुआ बीमार ।
पत्रकार की क़लमें अब
फ़ौलादी कहाँ रहीं,
अलख जगानेवाली आज
मुनादी कहाँ रही ?
मात कर रहे टी० वी० चैनल
अब मछली बाज़ार ।
फ़िल्मों से, किरकिट से,
नेताओं से हैं आबाद,
ताँगेवाले लिख लेते हैं
अब इनके संवाद|
सच से क्या ये अंधे
कर पाएंगे आँखें चार ?
मिशन नहीं गंदा पेशा यह
करता मालामाल,
झटके से गुज़री लड़की को
फिर-फिर करें हलाल,
सौ-सौ अपराधों पर भारी
इनका अत्याचार ।
त्याग-तपस्या करने पर
गुमनामी पाओगे,
एक करो अपराध
सुर्खियों में छा जाओगे,
सूनापन कट जाएगा
बंगला होगा गुलजार ।
पैसे की, सत्ता की
जो दीवानी पीढ़ी है
उसे पता है, कहां लगी
संसद की सीढ़ी है
और अपाहिज जनता
उसको मान रही अवतार ।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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8 replies on “एक करो अपराध सुर्खियों में छा जाओगे!”
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति सर
Thanks a lot ji.
बेहतरीन कटाक्ष
Thanks a lot ji.
Such a nice poem depicting the reality.
Thanks a lot ji.
Bilkul Sahi kaha
Ji aajkal aisa hi mahaul aur media hai.