कविता- शायरी, गीत-ग़ज़ल आदि अभिव्यक्ति के नायाब नमूने होते हैं| वैसे तो हमारे नेता लोग जो भाषण में माहिर होते हैं, वे भाषा के अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं| उपन्यास-कहानी आदि में भी हम बहुत सुंदर अभिव्यक्तियाँ पाते हैं| परंतु कविता-गीत-ग़ज़ल आदि में विशेष बात होती है| यहाँ बहुत ज्यादा शब्द नहीं होते| यहाँ कम शब्दों में ‘दिव्य अर्थ प्रतिपादन’ की शर्त होती है| ज़रूरी नहीं कि कविता-ग़ज़ल आदि बड़ी हो, थोड़े शब्दों में ही ये ज्यादा बड़ी अभिव्यक्ति करते हैं|
आज प्रस्तुत है क़तील शिफ़ाई जी की एक खूबसूरत ग़ज़ल, जिसमें कम शब्दों में ही बहुत सुंदर बात की गई है-

पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइये,
फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइये|
पहले मिज़ाज-ए-राहगुज़र जान जाइये,
फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइये|
कुछ कह रही हैं आपके सीने की धड़कनें,
मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइये|
इक धूप सी जमी है निगाहों के आस पास,
ये आप हैं तो आप पे क़ुर्बान जाइये|
शायद हुज़ूर से कोई निस्बत हमें भी हो,
आँखों में झाँक कर हमें पहचान जाइये|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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