आज फिर से अपने प्रिय गायक स्वर्गीय मुकेश जी का गाया एक गीत शेयर कर रहा हूँ| मेरा मानना है की मुकेश जी का गाया लगभग हर गीत अमर है| अपनी आवाज का दर्द जब वे गीत में पिरो देते थे, तब चमत्कार ही हो जाता था|

आज का यह गीत फिल्म- बारात से है, गीत के बोल लिखे हैं मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने और इस गीत का संगीत तैयार किया था, चित्रगुप्त जी ने, यह गीत वैसे अजित जी पर फिल्माया गया था|
लीजिए प्रस्तुत है यह नायाब गीत-
मुफ्त हुए बदनाम
किसी से हाय दिल को लगा के,
जीना हुआ इल्जाम
किसी से हाय दिल को लगा के|
मुफ्त हुए बदनाम|
गए अरमान ले के
लुटे लुटे आते हैं,
लोग जहां में कैसे
दिल को लगाते हैं|
दिल को लगाते हैं,
अपना बनाते हैं,
हम तो फिर नाकाम,
किसी से हाय दिल को लगा के,
मुफ्त हुए बदनाम|
समझे थे साथ देगा,
किसी का सुहाना ग़म
उठी जो नज़र तो देखा
तनहा खड़े हैं हम,
तनहा खड़े हैं हम,
दिन भी रहा है कम|
रस्ते में हो गयी शाम,
किसी से हाय दिल को लगा के,
मुफ्त हुए बदनाम|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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2 replies on “किसी से हाय दिल को लगा के!”
Mukesh ji ke kuchh ansune gaane aapki wazah se sunane ko mile… shukriya fufaji
Thanks a lot ji.