अभी तो मैं नई-पुरानी पोस्ट की बात भी नहीं करूंगा, क्योंकि मन है कि कुछ दिन तक लंदन प्रवास की अपनी यादें ताज़ा करूं| पहले मैं शेयर कर रहा हूँ जून-जुलाई 2018 के प्रवास के कुछ अनुभव और उसके बाद अगस्त-सितंबर 2019 पर आऊँगा|

लंदन में वीक-एंड का दूसरा दिन रविवार, जब हम एक बार फिर से घूमने के लिए निकले, बस और ट्रेन से प्रारंभिक यात्रा करने के बाद हम पहुंचे ‘ग्रीनविच’ जो कि मेरिडियन लाइन पर स्थित है। मेरिडियन लाइन की रीडिंग के आधार पर ही जीएमटी (ग्रीनविच मीन टाइम) निर्धारित किया जाता है, दुनिया में हर स्थान की कोणीय स्थिति, इस स्थान से वह कितने कोण पर स्थित है, शायद ऐसे निर्धारित की जाती है। वैज्ञानिक किस्म के दिमाग वालों के लिए इसमें शायद और बहुत सी बातें जानने के लिए हों, मेरे लिए इतना ही बहुत है।
इसके पास ही क्वीन का महल और रॉयल ऑब्ज़र्वेटरी भी है, जहाँ बहुत सी खगोलीय गणनाएं की जाती हैं। वैसे लंदन में क्वीन के महल बहुत से हैं यह भी पुराना है, यहाँ की प्रॉपर्टी का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी रॉयल परिवार के पास है।

इसके पास ही वह स्थान है, जहाँ से इस मौसम में, प्रत्येक रविवार की शाम को एक क्रूज़ के द्वारा थेम्स नदी की लगभग 2 घंटे की यात्रा कराई जाती है तथा इसमें दिखाया और बताया जाता है कि थेम्स नदी के किनारों पर कौन से महत्वपूर्ण स्थान हैं।
वैसे देखा जाए तो पुराने ज़माने में, सभी महत्वपूर्ण नगर प्रमुख नदियों के किनारे ही बसाए गए थे, जैसे हमारे यहाँ- गंगा, यमुना, गोदावरी, ब्रह्मपुत्र आदि-आदि नदियों के किनारे पर। लंदन में तो लगता है कि थेम्स नदी नगर के बीचों-बीच होकर गुज़रती है और इसके ऊपर अनेक पुल हैं, जो नगर के दोनों तरफ के हिस्सों को जोड़ते हैं। एक पुल के सिर्फ स्तंभ खड़े हुए थे, बताया गया कि पुल गिर गया था, सो उसके स्तंभों को लगे रहने दिया गया। यह जानकर तसल्ली हुई कि लंदन में भी पुल गिर जाते हैं। बाकी पुल तो बहुत सारे हैं, जिनमें प्रसिद्ध लंदन ब्रिज भी है और भी ब्रिज अलग-अलग कारणों से प्रसिद्ध हैं।
शिप से लौटते समय अनेक इमारतें और स्ट्रक्चर, नए-पुराने दिखाए गए, इनमें ‘लंदन आई’ भी है, जो एक विशाल आकाश-झूला है, लगातार चलता रहता है लेकिन देखने में लगता है कि वह स्थिर है, उसका एक चक्कर लगभग आधे घंटे में पूरा होता है। इसके अलावा अनेक कैथेड्रल, और मूल्यवान प्रॉपर्टी दिखाई गईं।

एक बात जिसने मेरा ध्यान ज्यादा आकर्षित किया, नदी के जिस किनारे पर पुराने महल आदि अधिक थे, उस तरफ अनेक कैदखाने भी थे, जहाँ बताया गया कि कैदियों को फांसी भी दी जाती थी। नदी के दूसरे किनारे पर विलियम शेक्सपियर और चार्ल्स डिकेंस से जुड़े अनेक स्थान थे, जिनमें थिएटर और वे स्थान भी थे जिनको लेकर डिकेंस ने अपने उपन्यास आदि लिखे थे।
कुल मिलाकर जीवन नदी के दो निरंतर समानांतर चलते किनारे, जिनमें से एक पर राज-काज, सुख-सामान और अपराध और दूसरी तरफ सृजन, अभिव्यक्ति आदि। ये विभाजन मैंने ऐसे ही कर दिया, जरूरी नहीं है कि ऐसा कोई विभाजन हो, ये साथ-साथ भी चल सकते हैं।
नदी किनारे पर स्थित भवनों, स्थानों आदि के नाम लेने में तो बहुत टाइम लग जाएगा, मैंने उनको याद भी नहीं किया, वह बताने का मेरा उद्देश्य भी नहीं है, पर इनमें से कुछ हैं- टॉवर ऑफ लंदन, लंदन एक्वेरियम, हाउसेज़ ऑफ पार्लिआमेंट, बटर-सी पार्क, रॉयल बोटेनिक गार्डन्स और ब्रिज तो कम से कम 15-20 हैं।
अंत में डॉ. कुंवर बेचैन जी के एक गीत की दो पंक्तियां, ऐसे ही याद आ रही हैं-
नदी बोली समुंदर से मैं तेरे पास आई हूँ,
मुझे भी गा मेरे साजन, मैं तेरी ही रुबाई हूँ!
आज के लिए इतना ही!
नमस्कार।
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बहुत सुंदर आलेख!!
Thanks a lot ji.
Both of you are looking lovely sir. Loved reading this post of yours.
Thanks a lot Abhishek ji.
बहुत ही अदभुत और प्यार पल सर, पढ़कर अच्छा लग रहा।
Thanks a lot ji.
नदी बोली समुंदर से मैं तेरे पास आई हूँ,
मुझे भी गा मेरे साजन, मैं तेरी ही रुबाई हूँ!
वाह कितना सुन्दर
Thanks ji.