शीर्षक पढ़कर आप सोच सकते हैं कि मैं किस डिश, किस व्यंजन की बात कर रहा हूँ और क्या ऐसी कोई डिश भी लंदन की विशेषता है! दरअसल मुझे तो किसी भी डिश की जानकारी नहीं है इसलिए ऐसी बात की तो उम्मीद न कीजिए।

असल में जब किसी भी विषय में बातचीत का समापन करना हो, तो एक तरीका यह भी है कि जहाँ लगे कि यह बात बतानी रह गई है, कुछ यहाँ से, कुछ वहाँ से, वे बातें ही कर ली जाएं। जैसे कड़ाही में हलुआ आदि खत्म होने पर उसे खुरचकर निकालते हैं! हाँ इतना ज्ञान तो मुझे है खाने-पीने के पदार्थों का!
हाँ तो कुछ बातें, जो मुझे यहाँ अच्छी लगीं, उनका ज़िक्र कर लेते हैं, वैसे कमियां भी सभी जगह होती हैं, लेकिन उन पर मेरा ध्यान तो गया नहीं है, एक माह के इस संक्षिप्त प्रवास में। हाँ जो बातें मैं कहूंगा, वो जितना अनुभव मुझे यहाँ हुआ है, उसके आधार पर ही कहूंगा, हो सकता है कुछ इलाकों में स्थिति इससे अलग हो।

कुछ बातें हैं जिन पर अपने देश में तो सरकारों ने कभी ध्यान दिया नहीं है, और ऐसा करके शायद कुछ व्यवसायों को हमारे देश में बहुत बढ़ावा मिला है!

जैसे एक है पीने का शुद्ध पानी! क्या ये हमारी सरकारों, नगर निकायों आदि की ज़िम्मेदारी नहीं है कि नागरिकों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध कराया जाए! अपने संक्षिप्त प्रवास में मुझे तो यहाँ कोई पानी शुद्ध करने के लिए आरओ सिस्टम, फिल्टर आदि इस्तेमाल करते नहीं दिखा। दुकानों में भी मैंने ये सामान बिकते नहीं देखा। होटल में रुकने पर भी यह बताया गया कि आपके कमरे, बाथ रूम में जो पानी आ रहा है, उसी को आप पीने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। सोचिए यदि हमारी सरकारें इस तरफ ध्यान देतीं तो नागरिकों का कितना भला होता, लेकिन तब यह फिल्टर, आरओ सिस्टम का उद्योग कैसे पनपता!

इसी प्रकार यहाँ मैंने किसी को जेनरेटर, इन्वर्टर आदि इस्तेमाल करते नहीं देखा। मैं गुड़गांव में 7-8 साल रहा हूँ, सोचिए वहाँ तो इन्वर्टर के बिना काम ही नहीं चलता, कितना पनपाया है इन उद्योगों को हमारी सरकारों के निकम्मेपन ने! इसके अलावा जिन हाउसिंग सोसायटियों में पॉवर बैक-अप दिया जाता है, वो कितना ज्यादा पैसा वसूलती हैं लोगों से और इसके लिए भी हमारी सरकारों का निकम्मापन ही ज़िम्मेदार हैं।
यहाँ लंदन की बसों में केवल ड्राइवर होता है और भुगतान बस, ट्रेन आदि सभी में कार्ड द्वारा किया जाता है। यहाँ मैंने पाया कि विकलांग व्यक्ति भी काफी संख्या में हैं। लेकिन वे गतिविधि के मामले में कहीं किसी से कम नहीं लगते। मैंने देखा कि यहाँ उनके पास सामान्य व्हील चेयर नहीं बल्कि मोटरचालित चेयर होती है। बस में जब कोई विकलांग व्यक्ति आता है तो ड्राइवर एक बटन दबाकर गेट से एक स्लोप वाला प्लेटफॉर्म निकाल देता है और वह व्यक्ति उससे बस में चढ़ जाता है। यहाँ सभी बसों में, ट्रेन में विकलांग व्यक्ति अपनी मोटरचालित कुर्सी के साथ चढ़ते हैं।
हर जगह- बस, रेल, मार्केट में आपको विकलांगों की मोटरचालित कुर्सी और बच्चों की प्रैम अवश्य दिखाई देंगी। सक्रियता में यह विकलांग व्यक्ति कहीं किसी से कम नहीं लगते और इनके लिए सुविधाएं भी हर जगह हैं, जिससे ये किसी पर निर्भर नहीं रहते।
बच्चों के मामले में भी ये है कि यहाँ पर वे या तो प्रैम में होते हैं या अपने पैरों पर, वे गोदी में दिखाई नहीं देते, और उनकी प्रैम के लिए भी सभी स्थानों पर व्यवस्था है। आपकों बस, ट्रेन और मार्केट में कुछ मोटरचालित व्हील चेयर और कुछ प्रैम अवश्य मिल जाएंगी।
अंत में एक बात याद आ रही है, शायद निर्मल वर्मा जी ने लिखा था कि लंदन जाने के बाद मेरी सबसे पहली इच्छा ये थी कि जिन अंग्रेजों ने हमारे देश पर इतने लंबे समय तक राज किया है, उनमें से किसी से अपने जूतों पर पॉलिश कराऊं। तो यहाँ मैंने देखा कि यहाँ शॉपिंग मॉल आदि में पॉलिश करने के लिए एक ऊंचे प्लेटफॉर्म पर कुर्सी रखी रहती है जिस पर पॉलिश कराने वाला बैठता है, उसके सामने ही पॉलिश करने वाला, फर्श पर रखी कुर्सी पर बैठकर पॉलिश करता अथवा करती है। उसको पॉलिश करते देखकर ही आप जान पाएंगे कि वह पॉलिश करने वाला अथवा वाली है, अन्यथा नहीं। सफाई कर्मी भी एक कूड़ा उठाने के साधन से, खड़े-खड़े ही नीचे पड़ा कूड़ा उठकर अपने पास रखी थैली में बिना छुए डाल देता है। हर काम की गरिमा यहाँ पर है।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।
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Nice
Thanks a lot ji.
well said sir
Thanks a lot ji.
Thank you for sharing आपके लेख से लंदन की सैर कर रहे।
Thanks a lot ji.
आपके लेख से हम भी लंदन की सैर कर रहे हैं।
Thanks and welcome ji.
Great post
Stay wealthy healthy safe and happy
Thanks a lot ji.