आज एक बार फिर से मैं अपने एक प्रिय कवि स्वर्गीय किशन सरोज जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ, जो गीतों के ऐसे सर्जक थे कि उनको बस सुनते ही जाने का मन होता था|

लीजिए प्रस्तुत है आंसुओं की मारक शक्ति से भरा हुआ यह गीत-
नींद सुख की
फिर हमें सोने न देगा
यह तुम्हारे नैन में तिरता हुआ जल ।
छू लिए भीगे कमल-
भीगी ॠचाएँ
मन हुए गीले-
बहीं गीली हवाएँ
बहुत सम्भव है डुबो दे
सृष्टि सारी
दृष्टि के आकाश में घिरता हुआ जल ।
हिमशिखर, सागर, नदी-
झीलें, सरोवर
ओस, आँसू, मेघ, मधु-
श्रम-बिंदु, निर्झर
रूप धर अनगिन कथा
कहता दुखों की
जोगियों-सा घूमता-फिरता हुआ जल ।
लाख बाँहों में कसें
अब ये शिलाएँ
लाख आमंत्रित करें
गिरि-कंदराएँ
अब समंदर तक
पहुँचकर ही रुकेगा
पर्वतों से टूटकर गिरता हुआ जल ।
आज के लिए इतना ही
नमस्कार|
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