अली सरदार जाफरी साहब की एक नज़्म आज शेयर कर रहा हूँ| जाफरी साहब का नाम हिंदुस्तान के प्रसिद्ध शायरों में शामिल है और उनको भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था|
लीजिए प्रस्तुत है अली सरदार जाफरी साहब की यह नज़्म-

जब नहीं आए थे तुम, तब भी तो तुम आए थे
आँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
याद की तरह धड़कते हुए दिल की सूरत
तुम नहीं आए अभी, फिर भी तो तुम आए हो
रात के सीने में महताब के खंज़र की तरह
सुब्हो के हाथ में ख़ुर्शीद के सागर की तरह
तुम नहीं आओगे जब, फिर भी तो तुम आओगे
ज़ुल्फ़ दर ज़ुल्फ़ बिखर जाएगा, फिर रात का रंग
शब–ए–तन्हाई में भी लुत्फ़–ए–मुलाक़ात का रंग
आओ आने की करें बात, कि तुम आए हो
अब तुम आए हो तो मैं कौन सी शै नज़र करूँ
के मेरे पास सिवा मेहर–ओ–वफ़ा कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा कुछ भी नहीं
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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