
ये दिल, ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया, आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ, आवारगी।
मोहसिन नक़वी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ये दिल, ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया, आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ, आवारगी।
मोहसिन नक़वी
गुलाम अली की सुन्दर ग़ज़ल |
जी वास्तव में मोहसिन नक़वी जी की लिखी इस ग़ज़ल को गुलाम अली जी ने बहुत खूबसूरती से गाया है।
जी, सही कहा आपने । इस गाना को जितना भी सुनो जी नही भरता है ।
जी सही कहा आपने।