
चलो अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें,
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।
दुष्यंत कुमार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
चलो अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें,
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।
दुष्यंत कुमार