
मैं अपने पाँव तले रौंदता हूँ साये को
बदन मेरा ही सही दोपहर न भाये मुझे।
क़तील शिफ़ाई
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मैं अपने पाँव तले रौंदता हूँ साये को
बदन मेरा ही सही दोपहर न भाये मुझे।
क़तील शिफ़ाई
very nice..
Thanks a lot ji.