
याद करके और भी तकलीफ़ होती थी ‘अदीम’,
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था|
अदीम हाशमी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
याद करके और भी तकलीफ़ होती थी ‘अदीम’,
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था|
अदीम हाशमी