
हर पुरवा का झोंका तेरा घुँघरू,
हर बादल की रिमझिम तेरी भावना,,
हर सावन की बूंद तुम्हारी ही व्यथा
हर कोयल की कूक तुम्हारी कल्पना|
जितनी दूर ख़ुशी हर ग़म से,
जितनी दूर साज सरगम से,
जितनी दूर पात पतझर का छाँव से,
उतनी दूर पिया तुम मेरे गाँव से|
कुंवर बेचैन