
निकला हूँ इक नदी-सा समन्दर को ढूँढ़ने,
कुछ दूर कश्तियों के अभी संग-संग हूँ|
सूर्यभानु गुप्त
आसमान धुनिए के छप्पर सा
निकला हूँ इक नदी-सा समन्दर को ढूँढ़ने,
कुछ दूर कश्तियों के अभी संग-संग हूँ|
सूर्यभानु गुप्त