
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में,
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है|
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में,
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है|
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
वाह, बहुत खूब |
बहुत बहुत धन्यवाद जी।