
उसका मिल जाना क्या, न मिलना क्या
ख्वाब-दर-ख्वाब कुछ मज़ा ही नहीं।
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
आसमान धुनिए के छप्पर सा
उसका मिल जाना क्या, न मिलना क्या
ख्वाब-दर-ख्वाब कुछ मज़ा ही नहीं।
कृष्ण बिहारी ‘नूर’