
पत्थर सुलग रहे थे कोई नक्श-ए-पा न था,
हम जिस तरफ़ चले थे उधर रास्ता न था।
मुमताज़ राशिद
आसमान धुनिए के छप्पर सा
पत्थर सुलग रहे थे कोई नक्श-ए-पा न था,
हम जिस तरफ़ चले थे उधर रास्ता न था।
मुमताज़ राशिद