
पत्तों के टूटने की सदा घुट के रह गई,
जंगल में दूर-दूर, हवा का पता न था।
मुमताज़ राशिद
आसमान धुनिए के छप्पर सा
पत्तों के टूटने की सदा घुट के रह गई,
जंगल में दूर-दूर, हवा का पता न था।
मुमताज़ राशिद